जब तुमने कहा
आज का चांद देखो
तुम्हारी आवाज में
आंसू नमी बनकर
उतर आई थी।
दूर होकर भी
देख सकता था तुम्हारा चेहरा
उस बदनसीब चांद में
जिसके यौवन को
तुम्हारी आहों ने स्याह कर दिया था।
कल चांद उतर आएगा
अपनी सर्वश्रेष्ठ कला से
औऱ, तुम्हारी आहें भी
बदल जाएगी मोहक मुस्कान में
एक बार फिर से ले सकोगी
तुम चैन की नींद।
लेकिन, तुम्हारी हर आह से
टूट जाता है जो अंतर में
क्या कभी कोई समेट पाएगा उसे
या फिर यो ही
आहों से लिपटे शब्दों के खंडहर पर
खड़े होकर ताजमहल का
झूठा एहसास होता रहेगा।
शब्दों की, आहों का
टुकड़ों का और चांद की
कोई अहमीयत नहीं होती
अहमीयत है तुम्हारी आंखों में
पल रहे उस ख्वाब की
जिसकी ताबीर अभी बांकी है...
जब उस सपने की ताबीर होगी
तब भी तुम्हारी आंखे नम होगी
लेकिन ये नमी
उस रात से अलग होगी
चांद तब बदनसीब नही खुशनसीब होगा
कहीं दूर से मैं भी
देख सकूंगा तब तुम्हारा
जीवंत चेहरा ।।
Sunday, April 18, 2010
अब कौन आएगा ?
इन सुनसान आंखों में
अब कौन आएगा ?
तेरे बाद मुझे रूलाने
अब कौन आएगा ?
जिंदगी के आखिरी पन्ने
कहीं कोरे न रह जाए
सूर्ख होती जिंदगी
या स्याह होती आत्मा के
पर कतरने
अब कौन आएगा?
तेरे बाद मुझे रूलाने
अब कौन आएगा ?
बुढ़ापे की दहलीज पर खड़ा
जवानी से दो-चार करता
रंगों का भेद देर से समझता
वाक्यों का मतलब शब्दों से तौलता
रूह की कंपकंपाहट से जिस्म हिचकोले लेता है
रंग, शब्द, जिस्म और रूह का भेद बताने
अब कौन आएगा ?
इन सुनसान आंखों में
अब कौन आएगा ?
तेरे बाद मुझे रूलाने
अब कौन आएगा ?
सूरज की पहली किरण से
चंद्रमा की आखिरी छांव तक
वक्त से लड़ता रहा
जीत हो या हार
हर जंग के लिए
मरसिया मैं पढ़ता रहा ।।
तेरे जाने के बाद
मुझे विजयतिलक लगाने
अब कौन आएगा ?
इन सुनसान आंखों में
अब कौन आएगा ?
तेरे बाद मुझे रूलाने
अब कौन आएगा ?
अब कौन आएगा ?
तेरे बाद मुझे रूलाने
अब कौन आएगा ?
जिंदगी के आखिरी पन्ने
कहीं कोरे न रह जाए
सूर्ख होती जिंदगी
या स्याह होती आत्मा के
पर कतरने
अब कौन आएगा?
तेरे बाद मुझे रूलाने
अब कौन आएगा ?
बुढ़ापे की दहलीज पर खड़ा
जवानी से दो-चार करता
रंगों का भेद देर से समझता
वाक्यों का मतलब शब्दों से तौलता
रूह की कंपकंपाहट से जिस्म हिचकोले लेता है
रंग, शब्द, जिस्म और रूह का भेद बताने
अब कौन आएगा ?
इन सुनसान आंखों में
अब कौन आएगा ?
तेरे बाद मुझे रूलाने
अब कौन आएगा ?
सूरज की पहली किरण से
चंद्रमा की आखिरी छांव तक
वक्त से लड़ता रहा
जीत हो या हार
हर जंग के लिए
मरसिया मैं पढ़ता रहा ।।
तेरे जाने के बाद
मुझे विजयतिलक लगाने
अब कौन आएगा ?
इन सुनसान आंखों में
अब कौन आएगा ?
तेरे बाद मुझे रूलाने
अब कौन आएगा ?
Saturday, April 17, 2010
एक खतरनाक सपना
एक बेहतर दुनियां
सुखद भविष्य,
भरा-पूरा परिवार
छोटी सी चारदीवारी
स्त्री की मोहब्बत
और, पौरूष के सम्मान का सपना
तरोताजा कर देता है मन को
आरोह-अवरोह से भरे जीवन में
भर जाता है खुशियों का रंग
धूप से मुरझाए चेहरों पर
छलकने लगती है भावों की रंगत।
खतरनाक है चेहरी की ये रंगत
खतरनाक है फटे होटों से मुस्कुराना,
खाली जेब से, लोकतंत्र की ताबीर से
पुलिस के गुंडाराज से, बाबाओं के बिस्तर से
जाति के पिताओं से, समाज के ठेकेदारों से
सूरत से सीरत से, किस्मत के क्रूर मजाक से
जिंदगी के पड़ाव से, टूटती सांसों की धड़कन से
धक-धक की आवाज पर नृत्य करने का सपना
वाकई खतरनाक है...।
खतरनाक है अपने अंजाम से पहले
किसी और अंजाम की बात सोचना
मौत नहीं तोड़ती सपनों की इमारत को
तोड़ लेता है इंसान स्वयं
सपने की ताबीर को
खुद उजाड़ लेता है इंसान
अपना सुंदर आशियाना
अपने कथित भाइयों के साथ मिलकर ।।
सुखद भविष्य,
भरा-पूरा परिवार
छोटी सी चारदीवारी
स्त्री की मोहब्बत
और, पौरूष के सम्मान का सपना
तरोताजा कर देता है मन को
आरोह-अवरोह से भरे जीवन में
भर जाता है खुशियों का रंग
धूप से मुरझाए चेहरों पर
छलकने लगती है भावों की रंगत।
खतरनाक है चेहरी की ये रंगत
खतरनाक है फटे होटों से मुस्कुराना,
खाली जेब से, लोकतंत्र की ताबीर से
पुलिस के गुंडाराज से, बाबाओं के बिस्तर से
जाति के पिताओं से, समाज के ठेकेदारों से
सूरत से सीरत से, किस्मत के क्रूर मजाक से
जिंदगी के पड़ाव से, टूटती सांसों की धड़कन से
धक-धक की आवाज पर नृत्य करने का सपना
वाकई खतरनाक है...।
खतरनाक है अपने अंजाम से पहले
किसी और अंजाम की बात सोचना
मौत नहीं तोड़ती सपनों की इमारत को
तोड़ लेता है इंसान स्वयं
सपने की ताबीर को
खुद उजाड़ लेता है इंसान
अपना सुंदर आशियाना
अपने कथित भाइयों के साथ मिलकर ।।
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